Manu Smriti
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निरादिष्टधनश्चेत्तु प्रतिभूः स्यादलंधनः ।स्वधनादेव तद्दद्यान्निरादिष्ट इति स्थितिः ।।8/162

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कि उस धन से जो सम्पत्ति लेकर पिता प्रतिभू हुआ हो उसकी सम्पत्ति से प्रतिभू का पुत्र ऋण परिशोध करे।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१. ‘निरादिष्टः’ का अभिप्राय ‘निरादिष्टधनपुत्रः’ है। (कुल्लूक) परन्तु यदि कर्ज़दार को पेश करने वाले ज़ामिन के पास, उस कर्ज़दार ने कर्जा उतारने लायक पर्याप्त धन छोड़ रखा हो, तो ऐसे धन को पाए हुए ज़ामिन का वारिस अपने पास से उस कर्ज़कों अदा करे, ऐसी शास्त्रमर्यादा है।
 
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