Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१. ‘निरादिष्टः’ का अभिप्राय ‘निरादिष्टधनपुत्रः’ है। (कुल्लूक)
परन्तु यदि कर्ज़दार को पेश करने वाले ज़ामिन के पास, उस कर्ज़दार ने कर्जा उतारने लायक पर्याप्त धन छोड़ रखा हो, तो ऐसे धन को पाए हुए ज़ामिन का वारिस अपने पास से उस कर्ज़कों अदा करे, ऐसी शास्त्रमर्यादा है।