Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दर्शन प्रातिभावी (मालजामिन) की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र उस ऋण को देवे। जिस ऋण को परिशोवार्थ उसका पिता प्रतिभुवि है तथा दर्शन प्रातिभुवि मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र उसका उपस्थित करने के हेतु बाध्य नहीं है।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु यह ज़मानत का धन न देने का विधान उस समय का है, जब कि उसका पिता किसी को पेश कर देने मात्र का ज़ामिन बना हो। ऐसे ज़ामिन पिता के कर जाने पर राजा उसके वारिसों से ज़मानत का धन दिलावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यहां जो कहा है कि जमानत का रुपया देना पुत्र का कत्र्तव्य नहीं है वह केवल ’दर्शनप्रातिभाव्य‘ के लिये कहा है ’दानप्रातिभाव्य‘ के लिये नहीं। ’दर्शनप्रातिभाव्य‘ वह है जिस में किसी ने केवल किसी के हाजिर करने की जमानत ली हो। यदि हाजिर न कर सके और इसलिये जुर्माना देना पड़े तो पुत्र उसको न दे। परन्तु ’दानप्रातिभाव्य‘ वह है जिस में रुपया दिलवाने की भी जमानत है। ऐसा रुपया तो