Manu Smriti
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प्रातिभाव्यं वृथादानं आक्षिकं सौरिकां च यत् ।दण्डशुल्कावशेषं च न पुत्रो दातुं अर्हति ।।8/159

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि पिता ने प्रातिभाव (जमानत) दिया हो वा ऋण लेकर पाखण्डी को दान दिया हो, वा द्यूत (जुवा) खेला हो वा मद्य पीने में व्यय किया हो, वा अर्थ दण्ड का धन दिया हो तो इस प्रकार के ऋण का परिशोध करने को उसका पुत्र बाध्य नहीं है।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ज़मानत का धन, कुपात्र को दान में दिया हुआ धन, हूए के सम्बन्ध का धन, शराबसम्बन्धी धन, किसी अपराध पर किये गये दण्ड व किसी टैक्स का शेष धन, पिता के मर जाने पर पुत्र इनका देनदार नहीं हो सकता।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
निम्न अवस्थाओ में पिता का ऋण चुकाना पुत्र का कर्तव्य नही है ? (1) प्रातिभाव्यम जमानत का (2) वृथा दानम्-अनुचितदान का (3) आक्षिकम्-जुए का (4) सौरिकं-सुरा अर्थात् शराब के लिये लिया हुआ (5) दण्डशुल्कावशेषम्-जुर्माने का,
 
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