Manu Smriti
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समुद्रयानकुशला देशकालार्थदर्शिनः ।स्थापयन्ति तु यां वृद्धिं सा तत्राधिगमं प्रति ।।8/157

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
समुद्र के पथ में कुशल, देश, काल, अर्थ इन चारों के देखने वाले जो वृद्धि ब्याज निर्धारित करें उस स्थान पर वही ब्याज लेना।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ऐसे अवसर पर समुद्र पार व्यापार करने में कुशल तथा देश-कालानुसारी अर्थशास्त्र को जानने वाले व्यापारी जो सूद निश्चित करते हों, उसे प्रामाणिक समझे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
स्मुद्र यात्रा में कुशल और देश तथा काल के जानने वाले जिस ब्याज की व्यवस्था कर दे वही ठीक समक्षना चाहिये ।
 
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