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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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COMMENTARY
अदर्शयित्वा तत्रैव हिरण्यं परिवर्तयेत् ।यावती संभवेद्वृद्धिस्तावतीं दातुं अर्हति ।।8/155
Commentary by
: स्वामी दर्शनानंद जी
यदि ब्याज भी देने की सामथ्र्य न हो तो मूलधन ब्याज सहित एकत्र कर एक नया लेख (तमस्सुक) लिख देना चाहिये।
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Commentary by
: पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु जो अशक्तता के कारण सम्पूर्ण सूद-धन को न दे सकता हो, तो जितना सूद दे सके, उतना ही देदे, और अवशिष्ट सूद न देकर उसे उसी मूलधन में परिवर्तित कर दे।
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Commentary by
: पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि सूद न दे सके तो मूल में जोड ले । जितनी ब्याज निकले उतना देना चाहिये ।
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