Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
अदर्शयित्वा तत्रैव हिरण्यं परिवर्तयेत् ।यावती संभवेद्वृद्धिस्तावतीं दातुं अर्हति ।।8/155

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि ब्याज भी देने की सामथ्र्य न हो तो मूलधन ब्याज सहित एकत्र कर एक नया लेख (तमस्सुक) लिख देना चाहिये।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु जो अशक्तता के कारण सम्पूर्ण सूद-धन को न दे सकता हो, तो जितना सूद दे सके, उतना ही देदे, और अवशिष्ट सूद न देकर उसे उसी मूलधन में परिवर्तित कर दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि सूद न दे सके तो मूल में जोड ले । जितनी ब्याज निकले उतना देना चाहिये ।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS