Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो कर्ज़दार ऋण चुकाने में अशक्त हो, और पुनः ठहराव करने की इच्छा करे, तो वह चढ़े हुए सूद को देकर कागज़ बदल दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जे ऋण चुकाने में असमर्थ है और क्रिया अर्थात ऋण को फिर जारी रखना चाहता है। वह (निजितां वृद्धिम ) उस समय तक के ब्याज को देकर (करणम) तमम्सुक बदना लेवे।