Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्रह्मतेज, बल और धन की इच्छा हो तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य क्रमानुसार पाँचवें, छठे और आठवें वर्ष जनेऊ करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. इह ब्रह्मवर्चस - कामस्य इस संसार में जिसको ब्रह्मतेज - ईश्वर विद्या आदि का शीघ्र एवं अधिक प्राप्ति की कामना हो, ऐसे विप्रस्य ब्राह्मण के बालक का उपनयन संस्कार पंच्चमे कार्यम् पांचवे वर्ष में ही करा देना चाहिये । इह बलार्थिनः राज्ञः इस संसार में बल - पराक्रम आदि क्षत्रिय - विद्याओं की शीघ्र एवं अधिक प्राप्ति की कामना वाले क्षत्रिय बालक का षष्ठे छठे वर्ष में और इह + अर्थिनः वैश्यस्य इस संसार में धन - ऐश्वर्य की शीघ्र एवं अधिक कामना वाले वैश्य के बालक का अष्टमे आठवें वर्ष में उपनयन संस्कार करा देना चाहिये ।
टिप्पणी :
‘‘जिसको शीघ्र विद्या, बल और व्यवहार करने की इच्छा हो और बालक भी पढ़ने में समर्थ हुए हों तो ब्राह्मण के लड़के का जन्म वा गर्भ से पांचवें, क्षत्रिय के लड़के का जन्म वा गर्भ से छठे और वैश्य के लड़के का जन्म वा गर्भ से आठवें वर्ष में यज्ञोपवीत करें ।’’
(सं० वि० उपनयन संस्कार)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जिसको शीघ्र विद्या-तेज, बल और व्यवहार करने की इच्छा१ हो और बालक भी पढ़ने में समर्थ हुए हों तो ब्राह्मण के लड़के का गर्भ से पांचवें, क्षत्रिय के लड़के का गर्भ से छठे, और वैश्य के लड़के का गर्भ से आठवें वर्ष में यज्ञोपवीत करें
टिप्पणी :
परन्तु यह बात तब संभव है कि जब बालक की माता और पिता का विवाह पूर्ण ब्रह्मचर्य के पश्चात् हुआ होवे। उन्हीं के ऐसे उत्तम बालक श्रेष्ठबुद्धि और शीघ्र समर्थ पढ़ने वाले होते हैं। (सं० वि० उपनयन)
आषोडशाद् ब्राह्मणस्य सावित्री नातिवर्तते।