Manu Smriti
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नातिसांवत्सरीं वृद्धिं न चादृष्टां पुनर्हरेत् ।चक्रवृद्धिः कालवृद्धिः कारिता कायिका च या ।।8/153

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सूद का हिसाब प्रतिवार्षिक से अधिक न होना चाहिए। अशक्तता आदि किसी कारण से जो न दिया हुआ सूद छोड़ दिया हो, उसे फिर न मांगे। सूद पर सूद न लेवे। निश्चित काल के बीत जाने पर, यदि कर्ज़दार मूलधन दे सके, तो फिर सूद की दर बढ़ाकर अधिक सूद न लेना चाहिए। यदि कर्ज़दार शीघ्र ही मूलधन वापिस करता हो, तो उसे न लेकर उस पर जबर्दस्ती सूद न चढ़ाना चाहिए। एवं, कर्ज़ के दबाव से कर्ज़दार से कोई मेहनत-मजूरी आदि शारीरिक श्रम भी न लेना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यह छः प्रकार की ब्याज न लेनी चाहिये:- (1) अति सांवतसरी (2) अटष्टा (3) चक्रवुद्धि (4) कालवुद्धि (5) करिता (6) कायिका
 
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