Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
और, एकबार दो सैंकड़ा चुकती किये जाने पर फिर सूद सहित धन की बढ़ती मूलधन से दूनी से अधिक कभी नहीं हो सकती। अर्थात्, यदि मूलधन से दूना ब्याज दिया जा चुका हो, तो फिर ब्याज और मूल दोनों समाप्त हो जावेंगे।१ एवं, बार ठहराव हो जाने पर, फिर उससे अतिरिक्त अधिक ब्याज एक भी नहीं मिल सकता।
टिप्पणी :
१. जब दूना धन आ जावे, उससे आगे कौड़ी न लेवे, न देवे। (सं० वि० गृहाश्रम, स० स० ४)।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सकृत आहता ) एक बार लेने पर (कुसीदबुद्धिः) ब्याज (द्वैगुण्यम न अत्येति) मूल के दूने से कभी अधिक नही होनी चाहिये । (धान्ये ) अन्न (सदे) वृक्षफल (लवे) ऊन (वाह्रो) बैल आदि (पंवता न अतिका्रमति) पंच गुने से अधिक नही होतें ।