Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गर्भाधान-तिथि, अथवा जन्म तिथि से आठवें, ग्यारहवें, वा बारहवें वर्ण क्रमानुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य का उपनयन (जनेऊ) करना चाहिए और जिसका जनेऊ न हो वह शूद्र कहलायेगा क्योंकि द्विज बनाने वाला संस्कार यही है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ब्राह्मणस्य ब्राह्मण के बालक का उपनायनम् उपनयन गुरू के पास पहुंचाना अर्थात् यज्ञोपवीत संस्कार गर्भाष्टमे अब्दे गर्भ से आठवें वर्ष में कुर्वीत करे, राज्ञः क्षत्रिय के बालक का गर्भात् + एकादशे गर्भ से ग्यारहवें वर्ष में, और विशः वैश्य के बालक का गर्भात् द्वादशे गर्भ से बारहवें वर्ष में उपनयन संस्कार करना चाहिए ।
टिप्पणी :
‘‘अष्टमे वर्षे ब्राह्मणमुपनयेत् । १ । गर्भाष्टमे वा । २ । एकादशे क्षत्रियम् । ३ । द्वादशे वैश्यम् ।४। आश्वलायन गृह्यसूत्र - जिस दिन जन्म हुआ हो अथवा जिस दिन गर्भ रहा हो उससे आठवें वर्ष में ब्राह्मण के, जन्म वा गर्भ से ग्यारहवें वर्ष में क्षत्रिय के और जन्म वा गर्भ से बारहवें वर्ष में वैश्य के बालक का यज्ञोपवीत करें ।’’
(सं० वि० उपनयन संस्कार)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
गर्भ से आठवें वर्ष ब्राह्मण का, गर्भ से ग्यारहवें वर्ष क्षत्रिय का और गर्भ से बारहवें वर्ष वैश्य का ‘उपनयन’ संस्कार करे