Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अब रेहन की रीति को कहते हैं। कि जो जो वस्तु लाभ देने वाली है जैसे भूमि, गऊ, आदि यदि गिरवी (रेहन) रक्खी जावे तो उस में ब्याज न लेवें। जब सरोध (रेहन) किये हुए अधिक काल हो जावे और रेहन रखकर जितना रुपया लिया गया था उससे कुछ रुपया अधिक स्वामी न पावे तो उस वस्तु को दे देवें अथवा बेच डालें। ऐसा न करें कि जब तक मूलधन न पाये तब तक उससे लाभ प्राप्त करता रहे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
आधि अर्थात धरोवर यदि उपकार बाली हो तो उस पर (कौसीदि) (वाद्धम) ब्याज न ले । (कालसेसोधात) बहुत काल व्यतीत होने पर भी (आधे) धरोवर का (निसर्ग) छूटना नही है (न विक्रयः) ओर न बेचना। अर्थात भूमि आदि ऐसी चीजे जिनसे नित्य लाभ पहुचता है गिरवी रक्खी जाॅय तो उन पर ब्याज नही लेना चाहिये । न वे हज्म की जा सकती है न बैची जा सकती है ।