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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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COMMENTARY
वसिष्ठविहितां वृद्धिं सृजेद्वित्तविवर्धिनीम् ।अशीतिभागं गृह्णीयान्मासाद्वार्धुषिकः शते ।।8/140
Commentary by
: स्वामी दर्शनानंद जी
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Commentary by
: पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
धन बढ़ाने के निमित्त वसिष्ठ ने जितना सूद लेने का विधान किया है, उतना सूद लेवे। अर्थात् वृद्धि चाहने वाला व्यापारी अधिक से अधिक सौ में अस्सीवां भाग, अर्थात् सवा रुपया सैंकड़ा मासिक सूद ले, इससे अधिक नहीं।
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