Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
चांदी के सिक्के में दो रत्ती के बराबर एक चांदी का माषक है। उन सोलह माषकों का एक चांदी का धरण होता है, और उतना ही पुराण। तथा, दस धरणों का एक चांदी का शतमान होता है।
तांबे के सिक्कों में कर्ष (सुवर्ण) के बराबर एक तांबे का ‘पण’ होता है, जिसे कर्ष के बराबर होने के कारण कार्षापण भी कहते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
आठ त्रसरेणुओ की एक लिक्षा तीन लिक्षा तीन लिक्षाओं का एक राजसर्षप का एक सर्षव छ गौरसर्षप का एक मघ्यम यव । तीन यवो का एक कृष्णाल । पाॅच कृष्णाल का एक माष । सोलह माष का एक सुवर्ण । चार सुवर्णा का एक पल । दस पल का एक धरण । दो कृष्णलो का एक शेष्य माष (चाॅदी का माष) । सोलह राप्य माष का एक धरण या चाॅदी का पुराण । ताॅबे के कर्ष भर के पण को कार्षापण (पैसा कहते है )