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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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COMMENTARY
पलं सुवर्णाश्चत्वारः पलानि धरणं दश ।द्वे कृष्णले समधृते विज्ञेयो रौप्यमाषकः ।।8/135
Commentary by
: स्वामी दर्शनानंद जी
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Commentary by
: पण्डित राजवीर शास्त्री जी
चार सुवर्णों का एक ‘पल’ होता है
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Commentary by
: पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, चार सुवर्णो का एक फल, दस फलों का एक धरण, और तोल से चार सुवर्णें का एक निष्क होता है। ये सोने के तोल व सिक्के हैं।
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