Manu Smriti
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सर्षपाः षड्यवो मध्यस्त्रियवं त्वेककृष्णलम् ।पञ्चकृष्णलको माषस्ते सुवर्णस्तु षोडश ।।8/134

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
छः गौरसर्षपों का एक ‘मध्ययव’ परिमाण होता है और तीन मध्ययवों का एक ‘कृष्णल’ पाँच कृष्णलों का एक ‘माष’ और उन सोलह माषों का एक ‘सुवर्ण’ होता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, छः दाने सरसों का एक मध्य परिमाण का जौ, तीन जौ की एक रत्ती, पांच रत्तियों का एक माषा, और सोलह माषों का एक सुवर्ण होता है।
 
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