Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
छः गौरसर्षपों का एक ‘मध्ययव’ परिमाण होता है और तीन मध्ययवों का एक ‘कृष्णल’ पाँच कृष्णलों का एक ‘माष’ और उन सोलह माषों का एक ‘सुवर्ण’ होता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, छः दाने सरसों का एक मध्य परिमाण का जौ, तीन जौ की एक रत्ती, पांच रत्तियों का एक माषा, और सोलह माषों का एक सुवर्ण होता है।