Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इन सबका चूड़ाकर्म अर्थात् मुण्डन पहले या तीसरे वर्ष करना चाहिए यह वेदाज्ञा है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. सर्वेषा एव द्विजातीनां चूडाकर्म सभी द्विजातियों - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य का चूडाकर्म - मुंडन संस्कार धर्मतः धर्मानुसार श्रुतिचोदनात् वेद की आज्ञानुसार प्रथमे + अब्दे प्रथम वर्ष में वा तृतीये अथवा तीसरे वर्ष में अपनी सुविधानुसार कत्र्तव्यम् कराना चाहिए ।
टिप्पणी :
‘‘यह चूडाकर्म अर्थात् मुंडन बालक के जन्म से तीसरे वर्ष वा एक वर्ष में करना । उत्तरायणकाल शुक्लपक्ष में जिस दिन आनन्दमंगल हो उस दिन यह संस्कार करें ।’’
(सं० वि० चूडाकर्म संस्कार)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
द्विजातियों का ‘चूड़ाकर्म’ संस्कार कुलधर्म के अनुसार पहले व तीसरे वर्ष वेद की आज्ञा से करना चाहिए।
टिप्पणी :
ऐसे स्थलों में धर्म का अर्थ कुलधर्म है जैसा कि आश्वलायन गृह्यसूत्र में लिखा है ‘‘तृतीये वर्षे चौलं यथाकुलधर्मं वा’’। यद्यपि बालक की कामना संभव नहीं तथापि उसके पिता की फल-कामना उपचार से बालक में निर्दिष्ट की गयी है (कुल्लुक)