Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सूर्य की किरणों के मकान की खिड़कियों के अन्दर से प्रवेश करने पर उस प्रकाश में जो बहुत छोटा रजकण दिखाई पड़ता है वह प्रमाणों - मापकों से पहला प्रमाण है, और उसे ‘त्रसरेणु’ कहते हैं ।
टिप्पणी :
महर्षि - दयानन्द ने इस श्लोक को ‘त्रसरेणु’ के लक्षण - प्रसंग में ‘पूना प्रवचन’ में पृष्ठ ८६ पर उद्धृत किया है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
झरोखे के भीतर पड़ने वाली सूर्य कि किरणों में जो छोटा सा ज़र्रा दीखता है, मापों में प्रथम उस माप को त्रसरेणु कहते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(भानौ ) सूर्य किरण के (जालान्तरगतौ ) छिद्र में जाने पर (यत रजः) जो कण सूक्ष्म बहुत सूक्ष्म (दृष्यते ) दिखाई पडते है (त्रसशेणु प्रचक्षते ) उसको त्रसरेणु कहते है (प्रथमम वत प्रमाणाम) यह पहली माप है ।