Manu Smriti
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लोकसंव्यवहारार्थं याः संज्ञाः प्रथिता भुवि ।ताम्ररूप्यसुवर्णानां ताः प्रवक्ष्याम्यशेषतः ।।8/131

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
संसार के पारस्परिक व्यवहार के हेतु ताँबा, चाँदी, सोने के सिक्के जिस तोल से बनाये जाते हैं अब हम उनके नाम वर्णन करते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अब मैं तांबा, रूप्य, सुवर्ण आदि की जो ‘पण’ आदि संज्ञाएं मोल लेना - देना आदि लोकव्यवहार के लिए जगत् में प्रसिद्ध हैं इन सबको पूर्णरूप से कहता हूँ ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सोना, चांदी, तांबे की जो पणादि संज्ञायें लोगों के व्यवहार के लिए पृथिवी में प्रसिद्ध हैं, उन्हें दण्डोपयोगी होने के कारण संक्षेपतः यहां कहता हूं-
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
लोक मे व्यवहार के लिये ताॅबे चाॅदी सोने के सिक्को की जो संज्ञा (भुवि प्रथिता) लोक में जारी है उनको विस्तार से कहता हूॅ
 
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