Manu Smriti
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वधेनापि यदा त्वेतान्निग्रहीतुं न शक्नुयात् ।तदैषु सर्वं अप्येतत्प्रयुञ्जीत चतुष्टयम् ।।8/130

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि शरीरांग छिन्न करने से भी न मानें तो उसे चारों प्रकार दण्ड एक ही साथ देना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राजा इन अपराधियों को जब शारीरिक दण्ड से भी नियन्त्रित न कर सके तो इन पर सभी उपरोक्त चारों दण्डों को एक साथ और तीव्ररूप में लागू कर देवे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि शरीर दण्ड से अपराध का पूरा दण्ड न हो तो चारो दण्डो को देना चाहिये ।
 
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