Manu Smriti
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अदण्ड्यान्दण्डयन्राजा दण्ड्यांश्चैवाप्यदण्डयन् ।अयशो महदाप्नोति नरकं चैव गच्छति ।।8/128

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो अदण्डनीय है उसे दण्ड देने से तथा जो दण्डनीय है उसे दण्ड न देने से राजा इस जन्म में अपयश पाता है तथा दुःख भी भोगता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो राजा दण्डनीयों को न दण्ड अदंडनीयों को दण्ड देता है अर्थात् दण्ड देने योग्य को छोड़ देता और जिसको दण्ड देना न चाहिए उस को दण्ड देता है वह जीता हुआ बड़ी निन्दा को और मरे पीछे बड़े दुःख को प्राप्त होता है; इसलिए जो अपराध करे उसको सदा दण्ड देवे और अनपराधी को दण्ड कभी न देवे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
‘‘जो राजा अनपराधियों को दण्ड देता और अपराधियों को दण्ड नहीं देता है, वह इस जन्म में बड़ी अपकीर्ति को प्राप्त होता और मरे पश्चात् नरक अर्थात् महादुःख को पाता है ।’’ (स० वि० गृहाश्रम प्रकरण)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि जो राजा दण्ड के योग्य निरपराधियों को दण्ड नहीं देता, वह सर्वत्र महती निन्दा को पाता है और परजन्म में भी महादुःख भोगता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो राजा निनपाधी को दण्ड देता है और अपराधी को नही देता वह बडे अपयश को पाता है और नरकगामी होता है।
 
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