Manu Smriti
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अधर्मदण्डनं लोके यशोघ्नं कीर्तिनाशनम् ।अस्वर्ग्यं च परत्रापि तस्मात्तत्परिवर्जयेत् ।।8/127

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
धर्म विरुद्ध जो दण्ड है वह यश तथा कीर्ति को नष्ट करता है तथा परलोक में स्वर्ग भी प्राप्त नहीं होता अतः धर्म विरुद्ध दण्ड न देवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
क्यों कि इस संसार में जो अधर्म से दण्ड करना है वह पूर्वप्रतिष्ठा वत्र्तमान और भविष्यत् में, और परजन्म में होने वाली कीर्ति का नाश करने हारा है और परजन्म में भी दुखदायक होता है इसलिये अधर्मयुक्त दण्ड किसी पर न करे ।‘’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि धर्मविरुद्ध दण्ड देना, पूर्व-प्रतिष्ठा और वर्तमान तथा भविष्यत् की कीर्ति को नाश करने वाला, किंवा परजन्म में भी दुःखदायी होता है। अतः, अधर्मयुक्त दण्ड का परित्याग करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अधर्मदण्डनम ) अर्धम से दण्ड देना (लोके) इस जीवन में (यशोघ्रमकीर्तनाशनम) यश और कीति नष्ब्ट करने वाला होता है। (परत्र अपि) ओर परलोक मे भी (अस्वग्र्यम) दुखदायी है। (तस्मात ) इसलिये (तत) इसको (परिवर्जयेत) न करे ।
 
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