Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र यह तीनों वर्ण साक्षी हो कर असत्य बोलें तो धर्मात्मा राजा उपरोक्त दण्ड देकर राज्य सीमा से देश निकाला दे दे परन्तु ब्राह्मण को उपरोक्त अपराध में केवल राजमण्डल से देश निकाला दे दे उसका धन सम्पत्ति हरण न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये तीन (८।१२३ - १२५) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त हैं -
१. अन्तर्विरोध - मनु के अनुसार उच्च - उच्च वर्ण को समान दोष का अधिक दण्ड मिलना चाहिये । एतदर्थ ८।३३५ - ३३८ श्लोक द्रष्टव्य हैं । और यह न्याय की दृष्टि से उचित भी है । किन्तु यहां १२३ में झूठी साक्षी देने पर क्षत्रियादि को तो दण्ड देकर देश निकालना और उसी अपराध पर ब्राह्मण को दण्ड की छूट देना मनु की मान्यता से विरूद्ध है ।
२. शैलीगत - विरोध - १२४वें श्लोक में ‘मनुः स्वायम्भुवः अब्रवीत्’ इस वाक्य से स्पष्ट है कि ये श्लोक मनु से भिन्न किसी व्यक्ति ने मनु के नाम से बनाये हैं । मनु अपना नाम लेकर कहीं कुछ नहीं कहते । और १२३ - १२४ श्लोकों में पक्षपातपूर्ण वर्णन है । मनु की शैली में पक्षपात का दोष नहीं है । क्यों कि इनमें जिस दोष के कारण दूसरे वर्णों को दण्डित करने का विधान है, उसी दोष पर ब्राह्मण को छूट देना पक्षपातपूर्ण है । १२५वां श्लोक १२४ श्लोक से ही सम्बद्ध होने से प्रक्षिप्त है ।