Manu Smriti
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एतानाहुः कौटसाक्ष्ये प्रोक्तान्दण्डान्मनीषिभिः ।धर्मस्याव्यभिचारार्थं अधर्मनियमाय च ।।8/122

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अधर्म के नाश (बन्द) होने तथा धर्म के प्रचलित होने के हेतु पण्डितों ने यह दण्ड साक्षियों के मिथ्या भाषण में कहा है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. धर्म का लोप न होने देने के लिए और अधर्म को रोकने के लिए झूठी या गलत गवाही देने पर विद्वानों द्वारा विहित ये दण्ड हैं ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
धर्म की रक्षा और अधर्म के नियमन के लिए झूठी गवाही देने पर पूर्व मुनियों ने ये उपर्युक्त दण्ड कहे हैं। परन्तु स्वायम्भुव मनु ने तो दण्ड के दस स्थान बतलाए हैं। जोकि उपस्थेन्द्रिय, उदर, जिह्वा, हाथ, पांव, आँख, नाक, कान, धन और शरीर हैं, जिन पर दण्ड दिया जाता है, और जो क्षत्रियादि तीनों वर्णों में प्रयुक्त किये जाते हैं। परन्तु ब्राह्मण को बिना अङ्गछेदन किये देश से बाहर निकाल दिया जाता है।
 
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