Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि साक्षी काम वश असत्य बोले तो दश गुना पूर्व साहस दण्ड देवे, यदि क्रोधवश अनृत साक्षी देवे तो तीन उत्तम साहस के अनुसार दण्ड देवे, यदि अज्ञानता वश मिथ्या बोले तो दो सौ (2) पण, दण्ड देवे, तथा यदि बालकपन के कारण मिथ्या भाषण करे तो सौ पण दण्ड स्वरूप देवें।
टिप्पणी :
1 व 2 साहस व पण आदि किस लिये हैं, जिनका वर्णन मनुजी ने अपने धर्मशास्त्र में भी कर दिया है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. काम से झूठी गवाही देने पर दशगुना ‘प्रथम साहस’ क्रोध से देने पर तिगुना ‘मध्यम साहस’ अज्ञान से देने पर दो सौ ‘पण’ और बालकपन में देने से सौ ‘पण’ दण्ड होना चाहिए ।
टिप्पणी :
‘‘जो पुरूष कामना से मिथ्या साक्षी देवे उससे पच्चीस रूपये दण्ड लेवे, जो पुरूष क्रोध से झूठी साक्षी देवे उससे छयालीस रूपये चैदह आने दण्ड लेवे, जो पुरूष अज्ञानता से झूठी साक्षी देवे उससे छह रूपये दण्ड लेवे, और जो बालकपन से मिथ्या साक्षी देवे तो उससे एक रूपया नौ आने दण्ड लेवे ।’’
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
काम से झूठी गवाही देने पर प्रथम साहस का दस गुना अर्थात् २५०० पैसे (उनतालीस रुपए एक आना), क्रोध से झूठी गवाही देने पर उत्तम साहस का तिगुना अर्थात् ३००० पैसे (छयालीस रुपए चौदह आने), अज्ञान से झूठी गवाही देने पर २०० पैसे (तीन रुपए दो आने) और बालकपन में झूठी गवाही देने पर १०० पैसे (एक रुपया नौ आने) जुर्माना किया जावे।१
टिप्पणी :
१. पण, प्रथम साहस, मध्यम साहस और उत्तम साहस, ये सिक्कों के नाम हैं। इन का प्रमाण आगे ८०वें और ८१वें श्लोकों में दर्शाया है। परन्तु अगले ७०वें श्लोक के अनुसार पुरुष, देश, काल को देख कर इन जुर्मानों में न्यूनाधिकता भ हो सकता है।