Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र इनके नाम के अन्त में शम्र्मा, रक्षा पुष्ठि और प्रेप्य क्रमानुसार संयुक्त करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अथवा ब्राह्मणस्य शर्मवद् स्यात् ब्राह्मण का नाम शर्मवत् - कल्याण, शुभ, सौभाग्य, सुख, आनन्द, प्रसन्नता भाव वाले शब्दों को जोड़कर रखना चाहिए । जैसे - देवशर्मा, विश्वामित्र, वेदव्रत, धर्मदत्त, आदि राज्ञः रक्षासमन्वितम् क्षत्रिय का नाम रक्षक भाव वाले शब्दों को जोड़कर रखना चाहिए जैसे - महीपाल, धनंज्जय , धृतराष्ट्र, देववर्मा, कृतवर्मा वैश्यस्य पुष्टिसंयुक्तम् वैश्य का नाम पुष्टि - समृद्धि द्योतक शब्दों को जोड़कर जैसे - धनगुप्त, धनपाल, वसुदेव, रत्नदेव, वसुगुप्त और शूद्रस्य शूद्र का नाम प्रेष्यसंयुक्तम् सेवकत्व भाव वाले शब्दों को जोड़कर रखना चाहिए जैसे - देवदास, धर्मदास, महीदास ।
अर्थात् व्यक्तियों के वर्णगत कार्यों के आधार पर नामकरण करना चाहिए
टिप्पणी :
‘‘जैसे ब्राह्मण का नाम विष्णुशर्मा, क्षत्रिय का विष्णु वर्मा, वैश्य का विष्णुगुप्त और शूद्र का विष्णुदास, इस प्रकार नाम रखना चाहिये । जो कोई द्विज शूद्र बनना चाहे तो अपना नाम दास शब्दान्त धर ले ।’’
(ऋ० प० वि० ३४९)