Manu Smriti
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आत्मैव ह्यात्मनः साक्षी गतिरात्मा तथात्मनः ।मावमंस्थाः स्वं आत्मानं नृणां साक्षिणं उत्तमम् ।।8/84

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. आत्मा का साक्षी आत्मा और आत्मा की गति आत्मा है, इसको जानके हे पुरूष! तू सब मनुष्यों का उत्तम साक्षी अपने आत्मा का अपमान मत कर अर्थात् सत्यभाषण जो कि तेरे आत्मा, मन, वाणी में है वह सत्य, और जो इससे विपरीत है वह मिथ्याभाषण है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
‘‘देखो, आत्मा ही आत्मा का साक्षी है, और आत्मा ही आत्मा की गति है। इसलिए, सब मनुष्यों में सर्वोत्तम साक्षीभूत अपने आत्मा का, झूठ बोलकर, अपमान मत करो।’’
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
आत्मा का साक्षी अत्मा ही है और आत्मा की गति भी आत्मा ही है इसलिये मनुष्यो के सबसे अच्छे गवाह अर्थात अपने आत्मा का (मा अवमंस्था) तिरस्कार मत करों ।
 
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