Manu Smriti
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यद्द्वयोरनयोर्वेत्थ कार्येऽस्मिंश्चेष्टितं मिथः ।तद्ब्रूत सर्वं सत्येन युष्माकं ह्यत्र साक्षिता ।।8/80

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कि वादी तथा प्रतिवादी के उपस्थित अभियोग के सम्बन्ध में अपने नेत्रों से देखी हुई अवस्था व वृत्तान्त को जो कुछ तुम जानते हो सब सत्य सत्य कहो, इस अभियोग में तुम्हारी गवाही है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
हे साक्षि लोगो! इस कार्य में इन दोनों के परस्पर कर्मों में जो तुम जानते हो उस को सत्य के साथ बोलो क्यों कि तुम्हारी इस कार्य में साक्षी है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
‘‘इस मुकद्दमे में इन दोनों वादी-प्रतिवादियों के परस्पर कर्मों के बारे में जो कुछ तुम जानते हो, वह सब सच सच कहो, क्योंकि तुम्हारी इस मुकद्दमे में साक्षि है।’’
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अस्मिन कार्ये) इस मुकदमे मे (द्वयों अनयो) इन दोनो का (मिथ) परस्पर (चेष्टिम) व्यवहार (यदवेत्थ) जो कुछ तुम जानते हो (तत सर्वम) उस सब को (सत्येन) सच सच (व्रत) कह दो। (अत्र हि) इस मुकदमे मे (युष्माकम) तुम्हारी (सक्ष्तिा) गवाही है।
 
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