Manu Smriti
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स्वभावेनैव यद्ब्रूयुस्तद्ग्राह्यं व्यावहारिकम् ।अतो यदन्यद्विब्रूयुर्धर्मार्थं तदपार्थकम् ।।8/78

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अपने स्वभाव से जो बात कहे उसे व्यवहार में ग्रहण करना चाहिये (अर्थात् उस बात को मान्य समझ लेखबद्ध करना चाहिये), तथा जो बात सिखलाने से कहे वह व्यर्थ है वह मानने योग्य नहीं है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
साक्षी के उस वचन को मानना जो स्वभाव ही से व्यवहारसम्बन्धी बोले और सिखाये हुए, इससे भिन्न जो - जो वचन बोलें उस - उसको न्यायधीश व्यर्थ समझे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
साक्षीलोग स्वाभाविक तौर पर जो कहें, राजा उसे ही व्यवहार-निर्णय में उपयोगी समझे। परन्तु इसके विपरीत सिखाने-पढ़ाने से जो बनावटी बातें कहें, वे सब न्यायधर्म के लिए निरर्थक हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
गवाह जो स्वाभाविक रीति से व्यावहारिक बात कहे वह ठीक है । जो इससे विपरीत कहे वह (धर्मार्थम) मुकदमे के विषय मे (अपार्थकम) निरर्थक है।
 
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