Manu Smriti
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प्राङ्नाभिवर्धनात्पुंसो जातकर्म विधीयते ।मन्त्रवत्प्राशनं चास्य हिरण्यमधुसर्पिषाम् ।2/29

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
नाक छेदन से पहले जातकर्म होता है उसमें मन्त्र पढ़कर सोने के वर्क व शहद तथा घी बालक को खिलाना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
पंसः बालक का जातकर्म जातकर्म संस्कार नाभिवर्धनात् प्राक् नाभि काटने से पहले विधीयते किया जाता है च और इस संस्कार में अस्य इस बालक को मन्त्रवत् मन्त्रोच्चारणपूर्वक हिरण्य - मधु - सर्पिषाम् सुवर्ण, शहद और घी अर्थात् सोने की शलाका से असमान मात्रा में शहद और घी को प्राशनम् चटाया जाता है ।
टिप्पणी :
‘‘तत्पश्चात् घी और पधु दोनों बराबर मिलाके, जो प्रथम सोने की शलाका कर रखी हो उससे बालक की जीभ पर ‘‘ओ३म्’’ यह अक्षर लिखके ..........................................घी और मधु को उस सोने की शलाका से बालक को नीचे लिखे मन्त्र से थोड़ा - थोड़ा चटाये ।’’ (सं० वि० जातकर्म संस्कार)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
नालच्छेदन से पहले बालक का ‘जातकर्म’ संस्कार किया जावे और सुवर्णशलाका से घृत-मधु चटकाते हुए उसकी जीभ पर मन्त्र लिखा जावे
 
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Comment By: Praveen Kumar Arya
Good initiative.
 
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