Manu Smriti
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बालवृद्धातुराणां च साक्ष्येषु वदतां मृषा ।जानीयादस्थिरां वाचं उत्सिक्तमनसां तथा ।।8/71
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
साक्ष्य में बालक वृद्ध, आतुर (दुःखी), उन्मत्त आदि के कथन को मिथ्या जानना चाहिये।
टिप्पणी :
साक्षी का सम्बन्ध स्मरणशक्ति तथा बुद्धि से है अतएव वृद्ध रोगी, उन्मत्त (पागल) पुरुषों की बुद्धि तथा स्मरणशक्ति ठीक न होने के कारण उनकी गवाही विश्वास योग्य नहीं। बालक का साक्ष्य अल्प बुद्धि तथा न्यायालय में भयभीत हो जाने के कारण प्रमाणिक नहीं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये दोनों (८।७० - ७१) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त हैं - १. प्रसंग - विरोध - ६९वें और ७२वें श्लोक में कुछ ऐसे कार्य गिनाये हैं, जिन में साक्षियों की परीक्षा न करने का समान प्रसंग है । इनके मध्य में (७०-७१ में) किन्हीं साक्षियों के अभाव में किनकी साक्षी कर लेनी चाहिये, यह कथन प्रसंग को भंग कर रहा है । और ६३ - ६४ श्लोकों में साक्षियों की विशेषतायें कह चुके हैं, पुनः उस विषय का प्रारम्भ करना उचित भी नहीं है । २. अन्तर्विरोध - (क) ७०वें श्लोक में यह ध्वनि हो रही है कि स्त्री की साक्षी आपत्काल में ही करनी चाहिये, यह भावना ६८वें श्लोक के विरूद्ध है । क्यों कि उसमें स्पष्ट कहा है कि स्त्रियों की साक्षी स्त्रियाँ ही करें । (ख) और ७०वें श्लोक में दासप्रथा की भी चर्चा है । मनु दासप्रथा को नहीं मानते, वे तो सेवाकार्य के लिये शूद्र वर्ण को मानते हैं, किन्तु शूद्र का कार्य दास के समान नहीं है प्रत्युत स्वतन्त्र कार्य का चयन करना है । (ग) ७१वें श्लोक में बालक, वृद्ध, आतुर की स्थिर वाणी न होने से उनकी साक्षी की परीक्षा के लिये कहा है, जब कि ७० में इनकी साक्षी के लिये कहा है । यथार्थ में साक्षियों के विषय में (६३-६४ में) कह चुके हैं, फिर यहाँ उस विषय का कथन निरर्थक है । (घ) और ६९ वें श्लोक में एकान्त अथवा गुप्त स्थानों के विवादों के विषय में सबकी साक्षी मनु ने मानी है, फिर उसके बाद साक्षी न करने योग्यों की गणना निरर्थक है । अतः ये श्लोक अन्तर्विरूद्ध और असंगत हैं ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
बाल वृद्ध दुखी जो झूठ बोले तो समझना चाहिये कि इनका चित स्थिर नही है ।
 
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