Manu Smriti
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अनुभावी तु यः कश्चित्कुर्यात्साक्ष्यं विवादिनाम् ।अन्तर्वेश्मन्यरण्ये वा शरीरस्यापि चात्यये ।।8/69

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिन पुरुषों को वादी प्रतिवादी के अभियोग की वास्तविकता से अनुभव प्राप्त हो वह साक्षी होवें, घर की चोरी, धन की लूट तथा प्राणहत्या के अभियोग में उपरोक्त गुण वाले साक्षियों की आवश्यकता नहीं है। वरन्-
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
घर के अन्दर एकान्त में हुई घटना में अथवा जंगल के एकान्त में हुई घटना में और रक्तपात आदि से शरीर के घायल हो जाने की अवस्था में जो कोई अनुभव करने वाला या देखने वाला हो वही विवाद करने वालों का साक्षी हो सकता है, चाहे वह कोई भी हो ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि घर के अन्दर या जंगल में कोई चोरी-डाका आदि की वारदात हो जावे, किंवा कहीं मारपीट का मामला हो जावे, तो वहां जो कोई भी देखने वाला हो, उसे उन झगड़ालुओं का साक्षी बनावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
घर के भीतर का अभियोग हो वन का या शरीर की हानि (रक्तपात) आदि का तो जो कोई इसका अनुभव रखता हो उसी को साक्षी कर ले ।
 
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