Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस विषय का वाद-विवाद होता है उससे सम्बन्ध रखने वाला, मित्र, सहायक, शत्रु और जिसका दोष सब स्थानों पर दृष्टिगत हुआ हो, व्याधि-पीड़ित तथा दुष्ट प्रकृति वाला।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ऋण आदि के लेने - देन से सम्बन्ध रखने वाले साक्षी नहीं हो सकते न मित्र न सहायक - नौकार आदि, न अभियोगी के शत्रु आदि, जिसकी साक्षी पहले झूठी सिद्ध हो चुकी है वे भी नहीं न रोगग्रस्त, और न अपराधी - सजा पाये व्यक्ति साक्षी हो सकते हैं ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इनका मुकदमे से धन का संबन्ध न हो झूठे न हो मित्र न हों शत्रु न हो केवल दोष निकालने वाले न हो न रोगी हो न अपराधी (सजा पाये ) हो ।