Manu Smriti
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स्वाध्यायेन व्रतैर्होमैस्त्रैविद्येनेज्यया सुतैः ।महायज्ञैश्च यज्ञैश्च ब्राह्मीयं क्रियते तनुः ।2/28

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद पढ़ना, व्रत, हवन, नैविध, नाग व्रत, देवर्षि, पितरों का तर्पण, पुत्रोत्पत्ति, महायज्ञ, वज्र इन सब कर्मों से शरीर मोक्ष पाने के योग्य होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
‘‘(स्वाध्यायेन) सकल विद्या पढने - पढ़ाने व्रतैः ब्रह्मचर्यसत्यभाषणादि नियम पालने होमैः अग्निहोत्रादि होम, सत्य का ग्रहण, असत्य का त्याग और सब विद्याओं का दान देने त्रेविद्येन वेदस्थ कर्म - उपासना - ज्ञान विद्या के ग्रहण इज्यया पक्षेष्टयादि करने सुतैः सुसन्तानोत्पत्ति महायज्ञैः ब्रह्म, देव, पितृ, वैश्वदेव और अतिथियों के सेवन रूप पंचमहायज्ञ और यज्ञैः अग्निष्टोमादि तथा शिल्पविद्याविज्ञानादि यज्ञों के सेवन से इयं तनुः इस शरीर को ब्राह्मीः क्रियते ब्राह्मी अर्थात् वेद और परमेश्वर की भक्ति का आधार रूप ब्राह्मण का शरीर बनता है । इतने साधनों के बिना ब्राह्मण - शरीर नहीं बन सकता ।’’ (स० प्र० तृतीय समु०)
टिप्पणी :
‘स्वाध्याय पढ़ने - पढ़ाने जपैः विचार करने - कराने , नानाविध होम के अनुष्ठान, सम्पूर्ण वेदों को शब्द , अर्थ, सम्बन्ध, स्वरोच्चारणसहित पढ़ने - पढ़ाने इज्यया पौर्णमासी इष्टि आदि के करने, पूर्वोक्त विधिपूर्वक सुतैः धर्म से सन्तानोत्पत्ति महायज्ञैः च पूर्वोक्त ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेवयज्ञ और अतिथियज्ञ यज्ञैश्च अग्निष्टोमादि यज्ञ, विद्वानों का संग - सत्कार, सत्य भाषण परोपकारादि सत्कर्म और सम्पूर्ण शिल्पविद्यादि पढ़ के दुराचार छोड़ श्रेष्ठाचार में वर्तने से इयम् यह तनुः शरीर ब्राह्मीः ब्राह्मण का क्रियते किया जाता है ।‘’ (स० प्र० चतुर्थसमु०) ‘‘मनुष्यों को चाहिए कि धर्म से वेदादिशास्त्रों का पठन - पाठन, गायत्री - प्रणवादि का अर्थ विचार, ध्यान, अग्निहोत्रादि होम, कर्म - उपासना - ज्ञानविद्या, पौर्णमास्यादि इष्टि, पंचमहायज्ञ, अग्निष्टोम आदि न्याय से राज्यपालन, सत्योपदेश और योगाभ्यासादि उत्तमकर्मों से इस शरीर को ब्राह्मीः अर्थात् ब्रह्मसम्बन्धी करें ।’’ (सं० वि० गृहाश्रम प्रकरण)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वेदादि शास्त्रों के पढ़ने, ब्रह्मचर्य सत्यभाषणादि नियमों के पालने, अग्निहोत्रादि होमों के करने, वेदस्थ कर्म उपासना ज्ञान इस त्रिविद्या के ग्रहण करने, पक्षेष्टि आदि के करने, सुसन्तानोत्पादन, पञ्चमहायज्ञों के सेवन और अग्निष्टोम आदि यज्ञों के करने से इस शरीर को ब्राह्मी अर्थात् वेद और परमेश्वर की भक्ति का आधाररूप ब्राह्मण का शरीर किया है
टिप्पणी :
नाम धरने में उपर्युक्त बात का ध्यान रखना आवश्यक है। इसमें शर्मा (सुख) वर्मा (रक्षा) गुप्त (किसी वनादि पदार्थ को संभाल के रखना-पुष्टि) और दास (दास्ययुक्त) का भी नामकरण के समय प्रयोग किया जावे, यह अभीष्ट नहीं क्योंकि शर्मा आदि कोई पदवी नहीं हैं। हाँ, नाम के अङ्ग हो सकते हैं, जैसे देवशर्मा, देववर्मा, देवगुप्त, देवदास आदि। सुख, रखा, पुष्टि, सेवा-ये भाव शर्मा वर्मा आदि से भिन्न अन्य शब्दों से भी मिलते हैं। अतः, नामकरण में उनका भी प्रयोग किया जा सकता है, जैसे कि यमस्मृति ने किया है। एवं, ब्राह्मण के नाम जयदेव, ब्रह्मदेव आदि, क्षत्रिय के भवनाथ, भद्रसेन आदि, वैश्य के वसुभूति, देवभूति, देवदत्त, रुद्रदत्त, आदि भी धरे जा सकते हैं। अतएव ऋषि दयानन्द ने भी नामकरण संस्कार में भद्रसेन, देवदत्त, भवनाथ आदि नाम लिखे हैं। नामों के पीछे शर्मा आदि लगाना पीछे की पौराणिक कल्पना है, जैसा कि विष्णुपुराण में पाया जाता है। अतः, यह कोई आर्षविधान नहीं कि नामों के पीछे पूंछ के तौर पर जयदेव शर्मा, कृष्णदेव शर्मा, रामचन्द्र बर्मा, रामस्वरूप वर्मा, ब्रह्मदेव गुप्त आदि नामों में शर्मा आदि लगाया जावे जोकि असंबद्ध होने से निरर्थक हैं। हां, सार्थक रूप में नाम के भाग के तौर पर प्रयुक्त किये जा सकते हैं। अर्थात् शर्मा आदि पद नाम में आसकते हैं नाम के साथ नहीं।
 
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