Manu Smriti
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गृहिणः पुत्रिणो मौलाः क्षत्रविश्शूद्रयोनयः ।अर्थ्युक्ताः साक्ष्यं अर्हन्ति न ये के चिदनापदि ।।8/62
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गृहस्थ, सन्तान वाले, व कुलीन क्षत्रिय, वैश्य वा शूद्र जो वादी के पड़ोस में रहने वाले हों वे साक्षी होने चाहिये। अचानक आया हुआ तथा विपत्ति से सताया हुआ साक्षी ठीक नहीं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
यह (८।६२ वां) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त है - १. अन्तर्विरोध - (क) इस श्लोक में साक्षियों की जो विशेषतायें बताई गई हैं, वे ८।६३ श्लोक में कही विशेषताओं से भिन्न हैं । दोनों श्लोकों में कथित विशेषताओं में कौन सी सत्य है और कौन सी असत्य, इसका निर्णय भी विचार करने से हो जाता है । साक्षी कैसा होना चाहिये, वह यर्थार्थ वक्ता हो, सब धर्मों को जानने वाला हो और लोभवृत्ति से रहित हो, तभी सत्य साक्षी दे सकता है । किन्तु इस श्लोक में ऐसी कोई विशेषता नहीं कही है । साक्षी गृहस्थी हो, पुत्र वाला हो, उसी स्थान पर पहले से रहता हो, और क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र वर्ण का हो, ६२वें श्लोक में ये विशेषतायें कहीं हैं, जिनमें एक भी विशेषता साक्षी की योग्यता को प्रकट नहीं करती । अतः यह श्लोक प्रक्षिप्त है । (ख) और ६३वें श्लोक में सभी वर्णों के आप्त पुरूषों को साक्षी बनाने की बात कही है, किन्तु ६२वें श्लोक में ब्राह्मण को साक्षियों में नहीं गिनाया है । अतः उस श्लोक से इस का विरोध है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
गृहस्थी हो सन्तान वाले हों मौल अर्थात उसी देश के हों चाहे क्षत्रिय हो चाहे वैश्य हों चाहे शूद्र ये मुदई के कहने पर गवाही देने के योग्य है । हर कोई नही । (अनापदि) यह व्याख्या साधारण है। आपतकाल में अन्य भी हो सकते है।
 
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