Manu Smriti
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यो यावन्निह्नुवीतार्थं मिथ्या यावति वा वदेत् ।तौ नृपेण ह्यधर्मज्ञौ दाप्यो तद्द्विगुणं दमम् ।।8/59

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो वादी वा प्रतिवादी जितने धन को मिथ्या बतलावे उतने धन का दुगुना दोनों से राजा दण्डस्वरूप लेवे, तथा यह दोनों अधर्मज्ञाता हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो कर्जदार जितने धन को छिपावे अर्थात् अधिक धन लेकर जितना कम बतावे अथवा जो कर्ज देने वाला जितना झूठ बोले अर्थात् कम धन देकर जितना ज्यादा बतावे राजा उन दोनों झूठ बोलने वालों को जितना झूठा दावा किया है उससे दुगुने धन के दण्ड से दण्डित करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ऋणो धन लेकर जितना कम लेने से मुकरे, और ऋणदाता जितने अधिक धन के बारे में झूठ बोले, राजा को चाहिए कि वह उन दोनों अधर्मियों पर उससे दुगना-दुगना जुर्माना करे। अर्थात्, यदि एक रुपया कर्ज़ लेकर ऋणी वारह आने और ऋणदाता सवा रुपया बतलावे, तो दोनों पर चार आने का दुगना आठ-आठ आने जुर्माना होना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जे उचित धन से कम दे या जो उचित धन से अधिक का दावा करे उसका दूना दण्ड उन दोनो को मिलना चाहिये क्योकि वे दोनो पापी है।
 
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