Manu Smriti
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अभियोक्ता न चेद्ब्रूयाद्बध्यो दण्ड्यश्च धर्मतः ।न चेत्त्रिपक्षात्प्रब्रूयाद्धर्मं प्रति पराजितः ।।8/58

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो वादी न्यायाधीश के सम्मुख तो कहता है परन्तु प्रतिवादी के सम्मुख मूक रहता है वह व्यवहार का झूठा प्रमाणित होकर प्राणदण्ड अथवा अर्थदण्ड के योग्य है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो अभियोक्ता - मुद्दई पहले मुकद्दमा दायर करके फिर अपने मुकद्दमे के लिए कुछ न कहे तो उसे धर्मानुसार कारावास या सजा और जुर्माना करने चाहिए, इसी प्रकार यदि तीन पखवाड़े अर्थात् डेढ़ मास तक अभियोगी अपनी सफाई में कुछ न कहे तो धर्मानुसार - कानून के अनुसार वह हार जाता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि कोई अभियोक्ता (मुद्देई) मुक़द्दमां दायर करके पीछे उसे कुछ भी सिद्ध न कर सके, तो उसे धर्मानुसार कारावास या ताड़न और जुर्माने की सजा देनी चाहिए। इसी प्रकार यदि अभियुक्त (मुद्दालेह) तीन पक्षों के भीतर अर्थात् डेढ़ मास के अन्दर, अपनी सफ़ाई पेश न करे, तो उसे भी धर्मानुसार पराजित हुआ समझना चाहिए।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अभियोक्ता) मुदई यदि न बोले तो दण्ड या जुमाने के योग्य है और यदि तीन पक्ष के भीतर मुदाइलै जवाब देही न करे तो हा जाय ।
 
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