Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गर्भसंस्कार, जातकर्म, मुण्डन, उपनयन इन संस्कारों से ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य के बीज का दोष और गर्भ का दोष छूट जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गाभैः गर्भकालीन - गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन होमैः हवनयुक्त संस्कारों से जातकर्म - चैल - मौज्जीनिबन्धनैः जातकर्म २।४ मुण्डन (२।१०), मेखलाबन्धन अर्थात् यज्ञोपवीत (२।११-४३) संस्कारों से द्विजानाम् द्विजातियों के बैजिकम् बीजसम्बन्धी - परम्परागत् पैतृक - मातृक संस्कारों से उत्पन्न होने वाले च और गार्भिकम् गर्भकाल में होने वाला एनः संस्कारजन्य दोष अपमृज्यते दूर हो जाता है अर्थात् इन संस्कारों के करने से बालकों के बुरे संस्कार मिटकर विशुद्ध संस्कार बनते हैं ।
टिप्पणी :
जिस करके शरीर और आत्मा सुसंस्कृत होने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त हो सकता है और सन्तान अत्यन्त योग्य होते हैं । अतः संस्कारों का करना सब मनुष्यों को अति उचित है ।
(सं० वि० भूमिका)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
गर्भसम्बन्धी संस्कारों (गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन) और जातकर्म, चूड़ाकर्म तथा उपनयन संस्कारों से द्विजों के मातृ-पितृ-जन्य दोष दूर हो जाते हैं।