Manu Smriti
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अदेश्यं यश्च दिशति निर्दिश्यापह्नुते च यः ।यश्चाधरोत्तरानर्थान्विगीतान्नावबुध्यते ।।8/53

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस नगर में प्रतिवादी ने कभी भी वास नहीं किया है परन्तु वादी उस नगर को कहकर तत्पश्चात् कहे कि मैंने उस नगर का नाम नहीं लिया है तो वह वादी सर्वथा आद्यन्त असत्य भाषण करता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो ऋणदाता १. झूठे गवाह और गलत प्रमाण प्रत्र प्रस्तुत करे, और २. जो किसी बात को प्रस्तुत करके या कहकर उससे मुकरता है या टालमटोल करता है, ३. जो कही हुई अगली - पिछली बातों को नहीं ध्यान में रखता अर्थात् जिसकी अगली - पिछली बातों में मेल न हो, ४. जो अपने तर्कों को प्रस्तुत करके फिर उनको बदल दे - उनमें फिर जाये, ५. जो पहले अच्छी प्रकार प्रतिज्ञा पूर्वक कही हुई बात को न्यायधीश द्वारा पुनः पूछने पर नहीं मानता, ६. जो एकान्त स्थान में जाकर साक्षियों के साथ घुल मिलकर चुप - चुप बात करे, ७. जांच के लिए पूछे गये प्रश्नों को जो पंसद न करे, ८. और जो इधर - उधर टलता फिरे तथा ९. ‘कहो’ ऐसा कहने पर कुछ न कहे, १०. और जो कही हुई बात को प्रमाणित न कर पाये, ११. पूर्वापर बात को न समझे अर्थात् विचलित हो जाये, वह उस प्रार्थना किये गये धन से हार जाता है अर्थात् न्यायाधीश ऐसे व्यक्ति को हारा हुआ मानकर उसे धन न दिलावे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु यदि कोई अभियोक्ता (१) जिस स्थान में ऋणी को धन दिया हो, उस स्थान में उस की उपस्थिति साबित न कर सके, और फ़र्जी स्थान पेश करके फिर उससे मुकर जावे, (२) पीछे-आगे कही गयी बातों का ध्यान न रखे, (३) ‘ऋण मेरे से लिया था। नहीं, नहीं मेरे पुत्र से लिया था’ इस प्रकार पहले कुछ बात कहकर फिर उसे बदले, (४) पहले सम्यक्तया प्रतिज्ञात बात को, न्यायाधीश के पूछने पर फिर न माने, (५) एकान्त देश में साक्षियों के साथ आपस में बातचीत करे, (६) किसी प्रश्न का पूछा जाना पसन्द न करे, (७) और जिरह से बचने के लिए इधर-उधर घूमे या टालमटोल करे, (८) ‘कहो’ यह कहने पर भी कुछ उत्तर न देवे, (९) कही गयी बातों को प्रमाणित न कर सके, (१०) तथा पूर्वापर प्रकरण को न समझे, वह अभियोक्ता उस धन को हार जाता है। अर्थात्, न्यायाधीश उसे वह धन न दिलावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
५३ ~ ५६ इतनी अवस्थाओ मे मनुष्य मुकदमा हार जाता है:- (1) यः उदेश्य दिशति जो झूठे कागज पेश करता है । (2) यः निदिश्य अपहते-जो कागज पेश करके इनकार करता है। (3) यः अधर उतरान अर्थान्विगीतान न अवबुघ्यते - जो अगली पिछली बात को नही समझता । (4) बात का उलट दे । (5) हाकिम के पूछने पर कुछ का कुछ कह जाय। (6) गवाहों से एकान्त मे बात करता है। (7) जो हाकिम के प्रश्नो पर अप्रसन्न होता है। (8) पूछने पर बोलता नही । (9) कहे तो अनिश्चित रूप में कहे। (10) पूर्वापर न समझे।
 
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