Manu Smriti
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अर्थेऽपव्ययमानं तु करणेन विभावितम् ।दापयेद्धनिकस्यार्थं दण्डलेशं च शक्तितः ।।8/51

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वाद के निवेदित अभियोग से यदि प्रतिवादी इन्कार करे तथा वादी साक्षी व लेख आदि साधनों द्वारा अपने अभियोग को सत्य प्रमाणित कर दे तो राजा ऋणदाता के धन को ऋणी से दिलादे और इस असत्यभाषी ऋणी को उसकी शक्ति के अनुसार दण्ड भी देवे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(जो कोई कर्जदार कर्ज लेकर) कर्ज लेने से मुकर जाये और लेख, साक्षी आदि साधनों से उसका कर्ज लिया जाना निश्चित हो जाये तो महाजन का धन भी दिलवाये और उसकी शक्ति के अनुसार कुछ जुर्माना भी करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु यदि ऋणी धन लेने से मुकर जावे और प्रमाणों से उसका ऋण लेना प्रमाणित हो जावे, तो न्यायाधीश उससे महाजन का धन दिलवादे और साथ ही उसकी शक्ति को देखकर उसे कुछ दण्ड भी दे।
 
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