Manu Smriti
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अधमर्णार्थसिद्ध्यर्थं उत्तमर्णेन चोदितः ।दापयेद्धनिकस्यार्थं अधमर्णाद्विभावितम् ।।8/47

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि ऋणदाता ने राजा के सन्मुख अपने दिये हुये ऋण के विषय में निवेदन किया तथा साक्षी व लेखादि प्रमाणों द्वारा उस ऋण को प्रमाणित कर दिया हो तो राजा उसके धन को ऋणी से दिलादे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कर्जदार से अपना धन वसूल करने के लिए कर्ज देने वाले की ओर से प्रार्थना करने पर राजा महाजन का निश्चित किया हुआ धन कर्जदार से दिलवाये ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ऋणी से धन दिलवा देने के लिए कर्ज़दाता से प्रार्थित होने पर न्यायाधीश कर्ज़दार से महाजन का धन, सबूत मिल जाने पर, दिलवादे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
अधमर्ण - कर्जदार जो उधार ला । उत्तमर्ण - महाजन जो उधार दे । कर्ज के रूप्ये के लिये यदि महाजन नालिश करे तो उस धनिक का निश्चित धन कर्जदार से दिलवा दें ।
 
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