Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
धर्मात्मा द्विजों ने जिस धर्म का पालन किया है उस देश, कुल व जाति के अनुसार धर्म को नियत करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
यह (८।46वां) श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त है -
अन्तर्विरोध - मनु ने धर्म - निर्णय का आधार अनुमानादि प्रमाणों (४४) सत्य, देश, काल (४५) को माना है । किन्तु इस श्लोक में कुल व जाति को भी आधार माना है । यह मनु की मान्यता के विरूद्ध है । और कुल व जाति को धर्म - निर्णय में आधार बनाया भी नहीं जा सकता । क्यों कि कुलादि के धर्मों का निर्णय करना ही कठिन है । और धर्म - शास्त्र के प्रणेता मनु ने ऐसी कहीं भी व्यवस्था नहीं मानी है । और जब ४५वें श्लोक में देश, काल की बात कह दी है तो फिर ४६वें का कथन पुनरूक्त है । मनु जैसा आप्त - पुरूष ऐसी बातें नहीं कह सकता । कुल व जातिगत - धर्मों का मिश्रण जन्ममूलक वर्णव्यवस्था के पक्षपाती ने किया है । अतः यह कथन मौलिक नहीं है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सद्धि धमिकै द्विजातिभि आचरितम यत म्यात ) जो धामिक द्विज सत्पुरूषो के आचार के अनुकुल हो और देश कुल तथा जाति की मर्यादा के विरूद्ध न हो उसको व्यवहार मे लावे ।