Manu Smriti
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यथा नयत्यसृक्पातैर्मृगस्य मृगयुः पदम् ।नयेत्तथानुमानेन धर्मस्य नृपतिः पदम् ।।8/44

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस प्रकार बहेलिया (शिकारी) घाव खाये हुए मृग के शरीर से गिरे हुए रक्त बिन्दुओं द्वारा उसके स्थान का अनुसन्धान पा लेता है उसी प्रकार राजा अनुमान से धर्म पद को प्राप्त करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जैसे शिकारी खून के धब्बों से हिरण के स्थान को प्राप्त कर लेता है वैसे ही राजा या न्यायकर्ता अनुमान प्रमाण से धर्म के तत्व अर्थात् वास्तविक न्याय का निश्चय करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जैसे, व्याध रुधिर-पातों से मृग के ठिकाने को पा लेता है, वैसे ही राजा अनुमान से धर्म के पद को पा ले। अर्थात्, जैसे, गिरे हुए रुधिर के पीछे-पीछे चल कर रुधिर के स्रोत मृग को व्याघ ढूंड लेता है, वैसे ही राजा को चाहिए कि वह अनुमान की लड़ी के पीछे-पीछे चल कर सचाई को खोज निकाले और असली अपराधी का पता लगाले।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जैसे (मृगयुः) शिकारी हिरन के (असृक पाते:) गिरे हुए खून को देख देखकर उसके पैरो का पता चलाता है इसी प्रकार राजा अनुमान करके धर्म की तलाश करे ।
 
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