Manu Smriti
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जातिजानपदान्धर्मान्श्रेणीधर्मांश्च धर्मवित् ।समीक्ष्य कुलधर्मांश्च स्वधर्मं प्रतिपादयेत् ।।8/41
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जातिधर्म, वंशधर्म, सम्प्रदाय आदि धर्म व कुलधर्म इन सब धर्मों की ओर दृष्टिपात कर अपना धर्म निर्धारित करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये पाच्च (८।३७-४१) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त हैं - १. प्रसंग विरोध - ८।३ में कहा है कि राजा १८ प्रकार के विवादों का निर्णय करे । और उसके बाद ३४वें श्लोक से चोरी में गये धन की व्यवस्था और चोरों को दण्ड का विधान किया है । इस प्रसंग में भूमि में गड़े धन की व्यवस्था अप्रासंगिक है । २. अन्तर्विरोध - (क) ३७ वें श्लोक में कहा है कि भूमि आदि में गड़े समस्त धन का स्वामी ब्राह्मण है । इसलिये ब्राह्मण उस समस्त धन को ले लेवे । और ३८-३९ श्लोकों में कहा है कि भूमि में गड़े हुए धन में से आधा धन द्विजों को देवे और आधा कोश में रखे । इन दोनों विधानों में परस्पर - विरोध है । (ख) और मनु ने ब्राह्मण के कर्मों में यज्ञकरनादि से ब्राह्मण की जीविका का भी निर्धारण किया है । यदि ब्राह्मण को ‘सर्वस्याधिपतिः’ (३७) मनु मानते, तो उसका निर्देश भी वहां अवश्य करते । और सन्तोषादि से जीवनयापन करने वाले ब्राह्मण को धन का स्वामी बनाकर उसके उद्देश्य से गिराना ही है । (ग) और ८।३३ श्लोक में कहा है कि राजा नष्ट या खोये धन के प्राप्त होने पर उसमें से छठा, १०वां अथवा १२वां भाग ले लेवे । शेष धन उसके स्वामी को दे देवे । किन्तु यहां ४० वें श्लोक में कहा है चुराये गये धन को सब वर्णों में विभक्त कर देवे, राजा कुछ भी न लेवे । यह उससे विरूद्ध व्यवस्था है । (घ) और मनु ने धर्म - निर्णय के लिये कुल और जाति को कहीं आधार नहीं माना है । वे धर्म के निर्णय में सत्य को ही मुख्य आधार मानते हैं और ८।८, ४४, ४५, १२६ श्लोकों के अनुसार देश व काल को भी आधार मानते हैं । यदि कुल व जाति को धर्म - निर्णय में आधार माना जाये तो धर्मशास्त्र की क्या आवश्यकता रहेगी ? अतः ४१वें श्लोक में जाति, व कुलधर्मों, को आधार बनान मनु की मान्यता से विरूद्ध है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
धर्म का जानने वाला मनुष्य जाति धर्म नगर धर्म श्रेणी धर्म कुल धम को देखकर अपना धर्म पालन करे । तात्पर्य यह है कि भिन्न भिन्न स्थानो और भिन्न भिन्न मनुष्य समूहो की भिन्न भिन्न मर्यादाये है उनको देखभालकर कार्य करना चाहिये ।
 
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