Manu Smriti
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आददीताथ षड्भागं प्रनष्टाधिगतान्नृपः ।दशमं द्वादशं वापि सतां धर्मं अनुस्मरन् ।।8/33

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उस वस्तु के छठे, दसवें व बारहवें भाग को रक्षा के व्यवार्थ राजा ले ले। सज्जन पुरुषों के धर्म का लक्ष्य कर राजा उस धनादि के स्वामी को अवस्थानुसार उस धनादि का भाग नियत करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
नष्ट या खोये धन के प्राप्त होने पर उसमें से राजा सज्जनों के धर्म का अनुसरण करता हुआ अर्थात् न्यायपूर्वक (धन के स्वामी की अवस्था को ध्यान में रखकर) छठा, दशंवां अथवा बारहवां - भाग करके रूप में ग्रहण करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
और, यदि वह उस गुमशुद्धा धन का स्वामी सिद्ध हो जावे, तो राजा सत्पुरुषों के धर्म का अनुसरण करता हुआ, उस गुमशुदा धन को पाने वाले स्वामी से उस धन का छठा भाग, अथवा दसवां या बारहवां भाग लेकर शेष उसे दे देवे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(प्र नष्ट अधिगतात ) किसी का खोया हुआ धन यदि मिले तो राजा उसमे से धर्म का विचार करता हुआ छठा दसवाॅ या बारहवां भाग ले ले।
 
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