Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
आकारैरिङ्गितैर्गत्या चेष्टया भाषितेन च ।नेत्रवक्त्रविकारैश्च गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः ।।8/26

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
आकार, इंगित (इशारा), गति, चेष्टा, नेत्र, रूप तथा वाणी इनके द्वारा मनुष्य के हृदय का भाव जाना जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
आकारों से संकेतों से चाल से चेष्टा - हरकत से और बोलने से तथा नेत्र एवं मुख के विकारों - हावभावों से मनुष्यों के मन का भीतरी भाव मालूम हो जाता है ।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS