Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
स्वर, वर्ण, रूप, इंगित, आकार, नेत्र, चेष्टा आदि बाहरी चिन्हों को देखकर मनुष्यों के हृदय की बात को समझें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
न्यायकत्र्ता को बाहर के चिन्हों से शरीर की मुद्राएं, आदि के लक्षणों से स्वर - बोलते समय रूकना, घबराना, गद्गद् होना आदि से, वर्ण - चेहरे का फीका पड़ना, लज्जित होना आदि से इंगित - मुकद्दमे के अभियुक्तों के परस्पर के संकेत, सामने न देख सकना, इधर - उधर देखना आदि से; आकार - मुख नेत्र आदि का आकार बनाना, कांपना, पसीना आना आदि से आंखों में उत्पन्न होने वाले भावों से और चेष्टाओं - हाथ मसलना, अंगुलियां चटकाना, अंगूठे से जमीन कुरेदना, सिर खुजलाना आदि से मुकद्दमे में शामिल लोगों के मन के असली भावों को भांप लेना - जान लेना चाहिये ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, राजा इजलास करता हुआ, स्वर, वर्ण, अर्थात् शरीर का पीला पड़ जाना-मुंह लाल हो जाना आदि रूप-विकार, इशारा या ऊपर-नीचे देखना, शरीर में पसीना-रोमाञ्च होना या मुख का बदलना, नेत्र-विकार, तथा चेष्टा, मनुष्यों के इन बाह्य-चिह्नों, से उनके मन के अन्दर का भाव निकाले।