Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य प्रयत्न सहित इस देश में रहे और शूद्र वृत्ति की कठिनता के कारण चाहे जिस देश में रहें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. द्विजातयः द्विजाति अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य लोग एतान् प्रयत्नः संश्रयेरन् इन उपर्युक्त देशों में प्रयत्न करके आश्रय ग्रहण करें - निवास करें वृत्तिकर्शितः शूद्रः तु जीविका के अभाव से पीडि़त शूद्र तो यस्मिन् कस्मिन् वा निवसेत् जिस किसी देश में जाकर निवास कर सकता है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(एतान्) इन (द्विजातयः) द्विज लोग (देशान्) देशों का (संश्रयेरन्) आश्रय लें (प्रयत्नतः) प्रयत्न करके। (शूद्रः तु) और शूद्र (यस्मिन् कस्मिन् वा) जहाँ कहीं (निवसेद्) बसे (वृत्र्तिकशितः) जीविका के वश।
अर्थात् द्विज लोगों को यत्न करके आय्र्यावर्त देश में ही बसना चाहिये। शूद्र लोग जीविका के वश होकर कहीं रह सकते हैं।
यहाँ विद्वानों से अपील की गई है कि वह आय्र्यावर्त में विशेष रुप से रहें जिससे यह देश विद्या के लिये प्रसिद्ध हो जाय। इसका यह अर्थ नहीं है कि यहाँ से बाहर जाने वालों को पाप लगता है।