Manu Smriti
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राजा भवत्यनेनास्तु मुच्यन्ते च सभासदः ।एनो गच्छति कर्तारं निन्दार्हो यत्र निन्द्यते ।।8/19

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जहाँ निन्दनीय मनुष्य निन्दा पाते हैं वहाँ राजा पाप से मुक्त होता है तथा सभासद लोग भी पापमुक्त रहते हैं। केवल अधर्मी ही को पाप लगता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस सभा में निन्दा के योग्य की निन्दा, स्तुति के योग्य की स्तुति, दण्ड के योग्य को दण्ड और मान्य के योग्य का मान्य होता है, वहां राजा और सब सभासद पाप से रहित और पवित्र हो जाते हैं पाप के कत्र्ता ही को पाप प्राप्त होता है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु जिस सभा में निन्दा के योग्य की निन्दा, अर्थात् दण्ड के योग्य को दण्ड मिलता है, वहां राजा पाप से रहित होता है, और सब सभासद् पाप से मुक्त हो जाते हैं। तब, केवल पापकर्ता को ही उपर्युक्त पाप-फल प्राप्त होता है।
 
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