Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
पादोऽधर्मस्य कर्तारं पादः साक्षिणं ऋच्छति ।पादः सभासदः सर्वान्पादो राजानं ऋच्छति ।।8/18

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अधर्म के चार भाग होते हैं। प्रथम के भाग को अधर्मी, द्वितीय भाग को साक्षी, तृतीय भाग को प्रबन्ध न कर सकने वाले सभासद, तथा चतुर्थ भाग को स्वयं राजा पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
‘‘जब राजसभा में पक्षपात् से अन्याय किया जाता है वहां अधर्म के चार विभाग हो जाते हैं । उनमें से एक अधर्म के कत्र्ता, दूसरा साक्षी, तीसरा सभासदों और चैथा पाद अधर्मी सभा के सभापति राजा को प्राप्त होता है ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
राजसभा में पक्षपात से किये गये अन्याय का अधर्म चौथाई अधर्म के कत्र्ता को चौथाई साक्षी को प्राप्त होता है, और चौथाई अंश शेष सब न्यायसभा के सदस्यों को तथा चौथाई राजा को प्राप्त होता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जब न्यायसभा में पक्षपात से अन्याय किया जाता है, तब अधर्म के चार विभाग हो जाते हैं। उनमें से एक भाग अधर्म के कर्ता को, और एक भाग झूठी साक्षी देने वाले को प्राप्त होता है। एवं, एक भाग सब सभासदों को, और एक भाग सभापति राजा को प्राप्त होता है।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS