Manu Smriti
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एक एव सुहृद्धर्मो निधानेऽप्यनुयाति यः ।शरीरेण समं नाशं सर्वं अन्यद्धि गच्छति ।।8/17

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
धर्म ही एक मित्र है जो मृत्यु के पश्चात् साथ जाता है। अन्य सब लोग शरीर के नाश के साथ ही सब सम्बन्ध परित्याग कर देते हैं (यद्यपि अधर्म भी मृत्यु के उपरान्त साथ जाता है परन्तु वह मित्र नहीं शत्रु है, हानि ही पहुँचाना उसका काम है।)
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इस संसार में एक धर्म ही सुहृद् (मित्र) है जो मृत्यु के पश्चात् भी साथ चलता है और सब पदार्थ वा संगी शरीर के नाश के साथ ही नाश को प्राप्त होते हैं अर्थात् सब संग छूट जाता है परन्तु धर्म का संग कभी नहीं छूटता । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस संसार में एक, धर्म ही, सुहृद् है, जो मृत्यु के पश्चात् भी साथ चलता है। और सब पदार्थ व संगी शरीर के नाश के साथ ही नाश को प्राप्त हो जाते हैं। अर्थात्, उन सब का उसी समय संग छूट जाता है, परन्तु धर्म का संग कभी नहीं छूटता।
 
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